दुर्गा शंकर जी: एक समर्पित इंजीनियर से समाजसेवी और राजनीतिक जागरूकता के अग्रदूत तक की यात्रा
दुर्गा शंकर जी: एक समर्पित इंजीनियर से समाजसेवी और राजनीतिक जागरूकता के अग्रदूत तक की यात्रा

दुर्गा शंकर जी: एक समर्पित इंजीनियर से समाजसेवी और राजनीतिक जागरूकता के अग्रदूत तक की यात्रा
दुर्गा शंकर जी एक ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिनकी जीवन यात्रा समाज सेवा, जनहित और बिहार के प्रति विशेष समर्पण की प्रेरणादायक कहानी कहती है। पेशे से एक कुशल इंजीनियर, उन्होंने अपने जीवन के दो दशक भारत से बाहर बिताए। वे मूलतः बिहार के निवासी हैं, लेकिन उनकी प्रारंभिक शिक्षा और दीक्षा उत्तर प्रदेश के कानपुर से हुई। शिक्षा और करियर की तलाश में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय पटल पर अपनी पहचान बनाई और विदेश के कई शहरों में तकनीकी और प्रबंधन क्षेत्र में सफलतापूर्वक कार्य किया।
बिहार से अटूट जुड़ाव
हालाँकि वे विदेशों में एक सुसज्जित जीवन जी रहे थे, लेकिन उनके हृदय में बिहार के लिए विशेष लगाव बना रहा। बिहार की स्थिति, वहाँ की सामाजिक और राजनीतिक चुनौतियाँ, तथा विकास की गति को लेकर उनकी चिंता हमेशा उनके मन में बनी रही। यही लगाव इतना गहरा था कि उन्होंने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर को पीछे छोड़कर भारत लौटने का साहसिक निर्णय लिया—सिर्फ इसलिए कि वे बिहार को एक विकसित, आत्मनिर्भर और सशक्त राज्य बनता देखना चाहते थे।
सामाजिक क्षेत्र में गहरी भागीदारी
भारत वापसी के बाद दुर्गा शंकर जी ने अपने को पूरी तरह समाजसेवा के लिए समर्पित कर दिया। बिहार के विभिन्न गैर-राजनीतिक सामाजिक संगठनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही है। वे न केवल सामाजिक समस्याओं की पहचान करते हैं, बल्कि उनके समाधान की दिशा में भी कार्य करते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक समरसता जैसे मुद्दों पर उन्होंने निरंतर काम किया है। उनकी सोच यह है कि समाज की उन्नति के बिना किसी राज्य या देश की तरक्की संभव नहीं है।
जन सुराज से जुड़ाव
राजनीतिक रूप से, दुर्गा शंकर जी जन सुराज अभियान से प्रारंभ से ही जुड़े हुए हैं। यह आंदोलन एक नयी राजनीतिक सोच, पारदर्शिता और लोक सहभागिता की मिसाल है। दुर्गा शंकर जी जन सुराज के एक प्रमुख प्रचारक हैं और दिल्ली-एनसीआर, बिहार तथा अन्य शहरों में इसके विस्तार में उनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। वे मानते हैं कि जन सुराज के माध्यम से ही बिहार को एक ऐसी दिशा दी जा सकती है, जहाँ आम नागरिक को विकास और सम्मान दोनों मिले।
वैश्विक स्तर पर बिहार के प्रतिनिधि
जब वे विदेशों में रहते थे, विशेषकर गल्फ देशों में, वहाँ के प्रवासी बिहारी समुदाय के बीच वे एक अत्यंत लोकप्रिय और सम्मानित नाम थे। उन्हें वहाँ "बिहार का गाँधी" कहकर पुकारा जाता था—यह उपाधि उनकी सेवा भावना, निःस्वार्थ सहयोग और सामाजिक कार्यों की मान्यता थी। उन्होंने न केवल बिहारी समाज की मदद की, बल्कि अन्य राज्यों से आए लोगों की सहायता के लिए भी हमेशा तत्पर रहे। संकट की घड़ी में उनकी सहायता कई लोगों के जीवन का सहारा बनी।
बिहार गौरव सम्मान से सम्मानित
उनकी उल्लेखनीय सेवाओं और सामाजिक योगदान के लिए उन्हें “बिहार गौरव” सम्मान से नवाज़ा गया है। यह सम्मान न केवल उनके कार्यों की आधिकारिक स्वीकृति है, बल्कि यह उनके प्रेरणादायी जीवन की गवाही भी देता है। वे उन दुर्लभ लोगों में से हैं, जो केवल शिकायत नहीं करते बल्कि समाधान का हिस्सा बनते हैं।
निष्कर्ष
दुर्गा शंकर जी का जीवन इस बात का उदाहरण है कि यदि किसी व्यक्ति में संकल्प, सेवा और समर्पण हो, तो वह किसी भी सीमा को पार कर समाज में बदलाव ला सकता है। एक इंजीनियर के रूप में उन्होंने तकनीक और प्रबंधन में सफलता पाई, लेकिन एक समाजसेवी और जन जागरूकता के प्रतिनिधि के रूप में उन्होंने असंख्य लोगों के जीवन में आशा और विश्वास का संचार किया। वे आज भी राजनीतिक और सामाजिक दोनों मोर्चों पर बिहार को आगे ले जाने के लिए निःस्वार्थ भाव से कार्य कर रहे हैं।
बिहार को विकसित, सशक्त और स्वाभिमानी बनाने की उनकी यह यात्रा हम सभी के लिए प्रेरणा है।
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